आंकड़े छिपाकर कोरोना मुक्त होंगे हमारे राज्य? केरल मॉडल का क्या है सच?
सुमन कुमार
भारत में कोरोना के मामले एक लाख दस हजार के पार पहुंच चुके हैं। देश का हर राज्य इस महामारी से यथा संभव मुकाबला कर रहा है। देश पिछले दो महीने से लॉकडाउन में है। अब भी सार्वजनिक यातायात तकरीबन बंद ही है। इसके बावजूद ऐसा नहीं लगता है कि देश के राज्य इस अति गंभीर मुद्दे पर राजनीति से बाज आ रहे हैं क्योंकि अगर इस लड़ाई में ये राज्य गंभीर होते तो कम से कम वो हरकत नहीं करते जिसका आरोप चीन पर लग रहा है। ये आरोप है आंकड़े छिपाने का।
ये सुनकर लोगों को झटका लग सकता है मगर ये एक गंभीर आरोप है। दरअसल कोरोना से लड़ाई में टेस्टिंग को महत्वपूर्ण औजार माना जा रहा है। मगर यही वो घुंडी है जहां अधिकांश राज्य सरकारें चुप्पी साधती दिख रही हैं।
अखबारों में, टीवी पर या इंटरनेट पर जब आप कोरोना के बारे में जानकारी तलाश करेंगे तो आपको हर राज्य के बारे में ये जानकारी तो मिलेगी कि किसी राज्य में कितने मरीज हैं, कितने ठीक हो गए, कितने मर गए, हेल्पलाइन नंबर क्या है, टेस्ट के लिए लैब की सुविधा कहां-कहां है, मुख्य अस्पताल कौन से हैं, मगर सबसे अहम जानकारी आपको कहीं नहीं मिलेगी की किसी राज्य ने अबतक कुल कितने टेस्ट किए हैं? वैसे भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर रोज देश भर में हुए टेस्ट की रिपोर्ट जारी करता है मगर वो राज्यवार डाटा नहीं देता क्योंकि उसके पास रिपोर्ट राज्यों से नहीं बल्कि लैब से आती है कि उन्होंने एक दिन में कितने सैंपल जांचे। इस आंकड़े के आधार पर बुधवार की सुबह तक देश में 25 लाख 12 हजार 388 टेस्ट किए गए हैं। मगर यहां हम बात राज्यों के डेटा की कर रहे हैं।
देश के सिर्फ दो राज्यों तमिलनाडु और केरल की सरकारी वेबसाइट पर आपको प्रतिदिन किए जाने वाले टेस्ट की जानकारी मिलेगी। इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार भी बीच बीच में टेस्ट का डाटा शेयर कर रही है। वैसे केरल ने ये जानकारी तब साझा करनी शुरू की जब उसपर कम टेस्ट करके कोरोना को नियंत्रण में दिखाने का आरोप लगा। गौरतलब है कि बीच में केरल में कोरोना के नए मरीज आने एकदम कम हो गए थे। किसी दिन एक तो किसी दिन दो नए मरीज आते थे। देश दुनिया में मीडिया के वामपंथी खेमे ने इसे केरल मॉडल की उपलब्धि बताकर दिखाना शुरू कर दिया था। बाद में पता चला कि केरल की सरकार कई दिन से रोज सिर्फ 80 टेस्ट कर रही है। बाद में दबाव पड़ने पर टेस्ट की संख्या बढ़ाई गई तो वहां फिर से नए मरीज मिलने शुरू हो गए। इसके बाद केरल सरकार ने प्रतिदिन टेस्ट का डाटा देना शुरू कर दिया। हालांकि अब भी वहां रोज बमुश्किल 15 सौ टेस्ट हो रहे हैं जो कि तमिलनाडु और महाराष्ट्र के रोजाना 10 हजार टेस्ट के मुकाबले कुछ भी नहीं है।
दूसरी ओर तमिलनाडु सरकार ने बिना किसी दबाव के अपने यहां बड़े पैमाने पर टेस्टिंग शुरू करवाई और आज हालत ये है कि तमिलनाडु देश में सबसे अधिक टेस्ट करने वाला राज्य बन चुका है। दक्षिण भारत के ही एक अन्य राज्य तेलंगाना ने भी लगातार ये दर्शाया कि वो नए मरीजों की संख्या पर सफलतापूर्वक लगाम लगा चुका है मगर वहां भी इसके पीछे कम टेस्ट का ही राज सामने आया है। टेस्टिंग के इस खेल में पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार भी खूब उलझी रही। आरंभ में वहां भी कम टेस्ट के आरोप लगे मगर अब वहां भी तेजी से टेस्ट होने लगे हैं। कम टेस्ट का आरोप बिहार, झारखंड, यूपी, मध्य प्रदेश, गुजरात आदि पर भी है। आप अगर इन राज्यों में कुल टेस्ट का आंकड़ा तलाश करेंगे तो आपको इंटरनेट से कोई जानकारी नहीं मिलेगी।
सेहतराग की टीम ने इस बारे में रिसर्च किया तो देश के कुछ राज्यों का एक सप्ताह पुराना डेटा मिला। वैसे पहले हम तमिलनाडु और केरल के अद्यन आंकड़े देख लेते हैं। तमिलनाडु में 19 मई तक 3 लाख 30 हजार टेस्ट हुए थे जबकि केरल में 19 मई तक कुल 46, 958 टेस्ट हुए हैं। केरल में 14 मई तक ये आंकड़ा 39,380 था। यानी प्रतिदिन करीब 15 सौ टेस्ट अब वहां हो रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में 18 मई तक 1 लाख 2 हजार 282 टेस्ट हुए हैं जबकि महाराष्ट्र में 19 मई तक 3 लाख से अधिक टेस्ट हुए हैं। बड़े राज्यों की बात करें तो शायद तेलंगाना में सबसे कम टेस्ट हुए हैं जहां 14 मई तक सिर्फ 22 हजार 842 टेस्ट हुए है। दूसरी ओर 14 मई तक आंध्र प्रदेश में 2 लाख एक हजार 196 टेस्ट हुए हैं और 14 मई तक गुजरात में 1 लाख 22 हजार 297 टेस्ट। इसी प्रकार 14 मई तक बिहार में 42 हजार टेस्ट हुए थे। जाहिर है कि देश में जिस भी राज्य में कम टेस्ट हो रहे हैं वहां कोरोना नियंत्रण में दिख रहा है।
इसलिए हमारा पाठकों को यही सुझाव है कि जब भी आप किसी राज्य के बारे में ऐसे दावे देखें कि उसने सफलतापूर्वक कोरोना पर नियंत्रण पा लिया है तो सबसे पहले उस राज्य के टेस्टिंग के आंकड़े खंगालने की कोशिश करें। आप समझ जाएंगे कि असल खेल कहां हो रहा है।
वैसे आपको ये भी बता दें कि हमारे देश की सरकारों ने ये खेल चीन से ही सीखा है जो कि अपने यहां टेस्ट से जुड़े किसी भी डाटा को सार्वजनिक नहीं कर रहा। पूरी दुनिया में वो अकेला देश है जिसने टेस्टिंग से जुड़े डाटा को सार्वजनिक नहीं किया है।
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